सीमा प्रकाश ने कुपोषित बच्चों को दिलाया भोजन का अधिकार

खंडवा
नवरात्र पर सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। परिवार और समाज की रक्षा के लिए साहस की मूर्ति बनकर सामने आने वाली स्त्रियों में मां का यह स्वरूप दिखता है। ऐसी ही साहस की प्रतिमूर्ति हैं समाजसेविका सीमा प्रकाश। आदिवासियों के जीवन की दिशा बदलने के लिए समाजसेवा में सीमा तन्मयता से जुटी हैं। गरीबों और जरूरतमंदों के प्रति सी सेवाभाव ने उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार दिलाया। खंडवा जिले के खालवा ब्लाक में करीब 18 साल पहले जब कुपोषण से बच्चों की लगातार मौत के मामले सामने आए तो हर किसी का दिल दहल उठा था। उस दौरान गरीबों को भोजन का अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रही सीमा प्रकाश और अन्य सामाजिक संस्थाओं ने इस मुद्दे को उठाते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में पीआइएल लगाकर जीत हासिल की।

इस लड़ाई के बाद प्रदेश सरकार ने बच्चों में कुपोषण होना स्वीकार करते हुए उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता दिखाई। वर्ष 2003 में स्पंदन समाजसेवा समिति का गठन कर कुपोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहीं सीमा बताती हैं कि आवाज उठाए जाने के बाद ही सरकार ने प्रदेश भर में पुनर्वास केंद्र खोलने शुरू किए। खालवा ब्लाक में आंगनबाड़ियां और पुनर्वास केंद्र खोले गए। इससे काफी हद तक व्यवस्थाओं में सुधार आया है।

सीमा प्रकाश को उनके इस योगदान के लिए वर्ष 2014-15 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी सम्मानित कर चुके हैं। कुपोषित बच्चों के पालकों में जागरूकता लाने और उन्हें सही पोषण आहार उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से उन्हें यह राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। वर्तमान में सीमा प्रकाश की संस्था आदिवासियों को परंपरागत अनाज की खेती के प्रति जागरूक कर रही है। इसमें कोदो, कुटकी, सावरिया जैसे प्रोटीन युक्त अनाज शामिल हैं। इसके अलावा आदिवासी परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए तरह-तरह के उद्योगों का संचालन भी खालवा ब्लाक में संस्था द्वारा कराया जा रहा है।

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