अदालत का फैसला, हर तकरार दहेज उत्पीड़न नहीं
नई दिल्ली
छह वर्ष से अधिक समय से दहेज उत्पीड़न के मुकदमे का सामना कर रहे एक व्यक्ति को अदालत ने बड़ी राहत दी है। अदालत ने उसकी पत्नी के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि हर छोटी-मोटी तकरार को दहेज उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध का रंग देना न्यायसंगत नहीं है। एक बहू या पत्नी को कहे गए प्रत्येक शब्द का अर्थ क्रूरता के दायरे में आए, यह जरूरी नहीं है। इसके लिए ठोस आधार का होना जरूरी है।
तीस हजारी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश चारु अग्रवाल की अदालत ने इस मामले में पति और सास को दहेज उत्पीड़न, मारपीट व आपराधिक धमकी के आरोप से मुक्त कर दिया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शादी के एक दशक बाद दहेज की मांग के लिए प्रताड़ित करने का आरोप कानूनी और नैतिक दोनों आधार पर सही नहीं है। खास तौर पर तब, जब महिला खुद प्राथमिकी दर्ज कराते हुए पहले कहती है कि उसे पड़ोसियों से बात करने, घर का काम ठीक से नहीं करने और मायके वालों की तारीफ करने पर सास बुरा सलूक करती है।
कहीं भी शिकायतकर्ता महिला ने दहेज के लिए प्रताड़ित करने का आरोप नहीं लगाया है। उसकी शिकायत बस सास द्वारा पति को उकसाने की थी। लेकिन एक साल बाद महिला अपने बयानों में मिर्च-मसाला लगाती है और बयान दर्ज कराते हुए कहती है कि उसे दहेज के लिए लंबे समय से प्रताड़ित किया जा रहा था। अदालत ने कहा कि हर घर में छोटी-मोटी बात पर कहासुनी होती है। लेकिन मामूली मनमुटाव को अपराध का रंग देना न्यायोचित नहीं है।