भाई दूज के दिन होती है चित्रगुप्त देव की पूजा, कलम-दवात की पूजा का है विधान

नई दिल्ली
भगवान चित्रगुप्त कलम के अधिष्ठाता देव हैं। कायस्थ ही नहीं, पठन-पाठन व लेखन से जुड़े सभी लोग उनकी पूजा अत्यंत श्रद्धा और विश्वास से करते हैं। धर्म भारत की संस्कृति और समाज का मूल आधार रहा है, जिसमें देवी-देवताओं का स्थान अप्रतिम है। जीवन के मंगलमय होने की कामना से यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, विभिन्न अवसरों पर की जाती है। ऐसे ही पूजित देवताओं में से एक हैं भगवान श्री चित्रगुप्त, जिनकी वार्षिक पूजा-आराधना हर वर्ष कार्त्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन की जाती है।

कलम के देवता के रूप में प्रसिद्ध अक्षरजीवी, लेखक कुलश्रेष्ठ, लेखकों को अक्षर प्रदान करने वाले, महालेखाकार आदि विशेषणों से अलंकृत चित्रगुप्त देव की उत्पत्ति कथा का विस्तार से वर्णन पद्म पुराण के सृष्टि खण्ड में मिलता है। विवरण मिलता है कि ब्रह्मा जी ने जगत के कल्याण के लिए विष्णु जी, शिव जी और अपनी स्वयं की शक्तियों को संचित किया और इन्हीं त्रिदेवों के तेज से हाथों में कलम-दवात, पत्रिका और पट्टी लिए हुए श्री चित्रगुप्त प्रगट हुए। युगपिता ब्रह्मा जी की काया से उत्पन्न होने के कारण इनके कुल को ‘कायस्थ’ कहा गया और हर किसी के हृदय में विराजमान होने के कारण इन्हें ‘चित्रगुप्त’ की संज्ञा मिली। त्रिदेवों के तेज से उत्पन्न होने के कारण श्री चित्रगुप्त में सत्, रज् और तम् ये तीनों गुण विद्यमान हैं।

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