जानिए कब है ‘देव दीपावली’ , क्या है शुभ-मुहूर्त, महत्व और पूजाविधि

वाराणसी
दिवाली के 15 दिन बाद मनाए जाना वाला त्योहार 'देव दीपावली' 19 नवंबर को है इस दिन कार्तिक पूर्णिमा भी है। इसे 'त्रिपुरारी' पूर्णिमा और 'त्रिपुरोत्सव' भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था और इसी खुशी में देवताओं ने दीए जलाकर उत्सव मनाया था। तब से ही देवोत्सव मनाए जाने लगा। कहा जाता है कि इस दिन सारे देवतागण गंगा घाट पर दिवाली मनाने आते हैं।

काशी के घाट पर विशेष पूजा होती है

इसलिए इस दिन काशी के घाट पर विशेष पूजा होती है और स्पेशल गंगा आरती होती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। कुछ लोग इस दिन को भगवान शिव के 'विजयी दिवस' के रूप में मनाते है। कार्तिक का महीना इसलिए काफी शुभ भी माना जाता है।
 

    देव दीपावली की तिथि- 19 नवंबर
    देव दीपावली तिथि आरंभ- 18 नवंबर को रात 12 :02 am
    देव दीपावली तिथि समाप्त-19 नवंबर को दोपहर 2 :39 pm

 
महत्व

माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा आकाश में प्रकट होते हैं और इनकी पूजा करने से इंसान को सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इंसान के सारे बिगड़े काम मिट जाते हैं। कृतिका नक्षत्र में भगवान शिव के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान बना रहता है।

पूजा विधि

    इस दिन गंगा स्नान किया जाता है, जो लोग गंगा स्नान नहीं कर सकते हैं, वो घर में पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर सकते हैं।
    इस दिन दान देने की परंपरा है।
    इस दिन लोग घरों में ब्राह्मणों का भोज कराते हैं।
    कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में तुलसी की पूजा की जाती है और उनके सामने घी का दीपक जलाते हैं।
    इसके बाद गंगा किनारे दीपक जलाते हैं, जो लोग गंगा के पास नहीं जा सकते हैं, वो घर में किसी बड़े बर्तन में पानी भरकर उसके किनारे दीपक जलाते हैं।

 

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