रूस में बने जंगी हथियार हैं भारत की ताकत, AK-47 राइफल, मिसाइल, लड़ाकू विमान और युद्धपोत

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से दोनों देशों के संबंधों पर जमी बर्फ पिघलने वाली है। भारत-रूस शिखर वार्ता में शामिल होने के लिए पुतिन सोमवार को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं। इस दौरान दोनों देशों के बीच कामोव केए-226टी हेलिकॉप्टर, एके-203 राइफल, इग्ला मैन पोर्टेबल मिलाइल लॉन्चर की डील को भी मंजूरी दी जा सकती है। भारत ने अमेरिका के तमाम दबावों के बावजूद एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम वाले सौदे पर मजबूती से खड़ा होकर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। पिछले 70 साल में रूस के हथियारों के दम पर भारत ने कई युद्ध लड़े हैं। इसमें राइफल, मिसाइल, लड़ाकू विमान, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर, अटैक हेलिकॉप्टर, युद्धपोत, पनडुब्बी और एयरक्राफ्ट कैरियर शामिल हैं। इसके अलावा ब्रह्मोस जैसी मिसाइल को भारत और रूस ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। जाने रूस में बने भारतीय सेनाओं के कुछ हथियारों के बारे में…

आईएनएस विक्रमादित्य
भारतीय नौसेना का एकमात्र एयरक्राफ्ट कैरियर विक्रमादित्य यूक्रेन के माइकोलैव ब्लैक सी शिपयार्ड में 1978-1982 में निर्मित कीव क्लास के विमानवाहक पोत का अपग्रेडेड वर्जन है। भारत ने 20 जनवरी 2004 को इस एयरक्राफ्ट कैरियर के लिए ऑर्डर दिया था। इस पोत को अपग्रेड करने में भारत को 2.3 अरब डॉलर खर्च करने पड़े थे। आईएनएस विक्रमादित्य 1987 से 1996 तक सोवियत नौसेना और रूसी नौसेना में एडमिरल फ्लोटा सोवेत्स्कोगो सोयुजा गोर्शकोव के नाम से तैनात एक विमानवाहक पोत था। 2008 में लॉन्च करने के बाद इसे नवंबर 2013 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। आईएनएस विक्रमादित्य की लम्बाई 284 मीटर और बीम 61 मीटर का है। इस पोत में कुल 22 डेक हैं। इस एयरक्राफ्ट कैरियर में लगे 6 टर्बो अल्टरनेटर और 6 डीजल अल्टरनेटर 18 मेगावाट की बिजली उत्पन्न करते हैं। आईएनएस विक्रमादित्य पर कुल 36 विमान और हेलिकॉप्टरों को तैनात किया जा सकता है। इसमें 26 मिग-29के लड़ाकू विमान और 10 कामोव केए-28 मैरिटाइम हेलिकॉप्टर शामिल हैं। इसके अलावा सुरक्षा के लिए 6 एके-630 मशीनगन, बराक-8 सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें भी लगी हुई हैं।

एस-400 मिसाइल सिस्टम
एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम है, जो दुश्मन के एयरक्राफ्ट को आसमान से गिरा सकता है। S-400 को रूस का सबसे अडवांस लॉन्ग रेंज सर्फेस-टु-एयर मिसाइल डिफेंस सिस्टम माना जाता है। यह दुश्मन के क्रूज, एयरक्राफ्ट और बलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। यह सिस्टम रूस के ही S-300 का अपग्रेडेड वर्जन है। इस मिसाइल सिस्टम को अल्माज-आंते ने तैयार किया है, जो रूस में 2007 के बाद से ही सेवा में है। यह एक ही राउंड में 36 वार करने में सक्षम है। S-400 का जलवा यह है कि इसके रडार 100 से 300 टारगेट ट्रैक कर सकते हैं। 600 किमी तक की रेंज में ट्रैकिंग कर सकता है। इसमें लगी मिसाइलें 30 किमी ऊंचाई और 400 किमी की दूरी में किसी भी टारगेट को भेद सकती हैं। मन करे, तो इससे ज़मीनी ठिकानों को भी निशाना बनाया जा सकता है। सबसे तगड़ी चीज़ यह कि एक ही समय में यह 400 किमी तक 36 टारगेट को एक साथ मार सकती है। इसमें 12 लॉन्चर होते हैं, यह तीन मिसाइल एक साथ दाग सकता है और इसे तैनात करने में पांच मिनट लगते हैं। यह इस बात की ज़िम्मेदारी भी ले सकता है कि दुश्मन की मिसाइल को कौन से फेज़ में गिराना है। लॉन्चिंग के तुरंत बाद, कुछ दूरी पर या करीब आने पर। अगर बूस्ट फेज़ यानी शुरुआत के समय ही मिसाइल ध्वस्त कर दी गई, तो उसके मलबे-राख से भी कोई नुकसान नहीं होगा। इसमें चार तरह की मिसाइल होती हैं। एक मिसाइल 400 किमी की रेंज वाली होती है, दूसरी 250 किमी, तीसरी 120 और चौथी 40 किमी की रेंज वाली होती है।

मिग-21 लड़ाकू विमान
1959 में बना मिग-21 अपने समय में सबसे तेज गति से उड़ान भरने वाले पहले सुपरसोनिक लड़ाकू विमानों में से एक था। इसकी स्पीड के कारण ही तत्कालीन सोवियत संघ के इस लड़ाकू विमान से अमेरिका भी डरता था। यह इकलौता ऐसा विमान है जिसका प्रयोग दुनियाभर के करीब 60 देशों ने किया है। मिग-21 इस समय भी भारत समेत कई देशों की वायुसेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। मिग- 21 एविएशन के इतिहास में अबतक का सबसे अधिक संख्या में बनाया गया सुपरसोनिक फाइटर जेट है। इसके अबतक 11496 यूनिट्स का निर्माण किया जा चुका है। मिग-21 बाइसन वही लड़ाकू विमान है, जिसके जरिए बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया था। हालांकि, पाकिस्तान ने कभी भी खुलकर इस सच्चाई को नहीं स्वीकार पाया। क्योंकि, लगभग 60 साल पुराने लड़ाकू विमान से पाकिस्तानी एयरफोर्स की रीढ़ कहे जाने वाले आधुनिक लड़ाकू विमान एफ-16 का मात खाना न तो अमेरिका को कबूल था और न ही पाकिस्तान को। दरअसल, रूस ने इसे अमेरिका के खिलाफ शीतयुद्ध के दौरान ही उपयोग करने के लिए विकसित किया था। चीन इस विमान को चेंगदू जे-7 के नाम से उत्पादन करता है। रूस और चीन के बाद से भारत इस विमान का उपयोग करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। हालांकि, भविष्य में इसे स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान के साथ बदले जाने की बात चल रही है। मिग-21 बाइसन ने भारत की तरफ से सबसे अधिक युद्धों में हिस्सा लिया है। यूं तो भारत के पास कई लड़ाकू विमान हैं, लेकिन ज्यादातर मौकों पर भारतीय वायुसेना इसी लड़ाकू विमान का उपयोग करती है। इस विमान की ऑपरेशनल कॉस्ट और मेंटीनेंस दूसरे कई लड़ाकू विमानों की अपेक्षा कम है। भारत लाइसेंस के तहत इस विमान का प्रोडक्शन हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड में करता है, इसलिए इसे अपग्रेड करने के लिए रूस से थोड़ी बहुत ही मदद की जरूरत पड़ी थी। यह अपनी क्लास का सर्वश्रेष्ठ फाइटर और इंटरसेप्टर लड़ाकू विमान है। यही कारण है कि भारत आज भी एलओसी और पाकिस्तान से जुड़ी सीमा के नजदीक इस लड़ाकू विमान को ज्यादा की संख्या में ऑपरेट करता है।

एके-47 और एके-203 राइफल
कलाशनिकोव कंसर्न की सबसे प्रसिद्ध राइफल एके-47 को दुनियाभर के 30 से ज्यादा देश इस्तेमाल करते हैं। भारतीय थलसेना, नौसेना और वायु सेना भी इस राइफल को अपने मुख्य हथियार के रूप में अपनाया है। एके-47 मुख्य रूप से 8 पार्ट्स से मिलकर बनी है, जिकी मेंटिनेंस बहुत ही कम होती है। इसलिए आतंकवादी भी इस रायफल का खूब प्रयोग करते हैं। भारत ने कुछ दिन पहले ही रूस के साथ 5 लाख से अधिक लेटेस्ट AK-203 असॉल्ट राइफलों के निर्माण को मंजूरी दे दी है। एके-203 राइफल तीन दशक पहले रक्षा बलों को दिए गए इंसास राइफल की जगह लेगी। एके-203 7.62 X 39 मिलीमीटर कैलिबर गन है। यह असॉल्ट राइफल्स 300 मीटर की प्रभावी रेंज के साथ, हल्के वजन, मजबूत और बेहतरीन टेक्नोलॉजी से लैस है। आधुनिक असॉल्ट राइफल्स का उपयोग करने में आसान हैं। यह वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का आसानी से सामना करने के साथ-साथ सैनिकों की युद्ध क्षमता को बढ़ाएंगे। वे काउंटर इंसर्जेंसी और काउंटर टेररिज्म ऑपरेशन में भारतीय सेना की प्रभावशीलता को बढ़ाएंगे। एके-203 इंसास के मामले में काफी छोटी, हल्की और आधुनिक है। बिना मैगजीन के इंसास का वजन 4.15 किलोग्राम होता है। वहीं, बिना मैगजीन के एके-203 का वजन 3.8 किलो होती है। इंसास की लेंथ 960 मिलीमीटर और एके-203 की 705 मिलीमीटर है। इस कारण इसे खतरनाक बंदूक माना जाता है। एके-203 में 7.62×39 मिलीमीटर की गोली का इस्तेमाल होता है। इंसास में 5.56×45 मिलीमीटर है।

टी-72 टैंक
T-72 को भारत में 'अजेय' कहा जाता है। यूरोप के बाहर भारत पहला ऐसा देश था जिसने रूस से टी-72 टैंक को खरीदा था। वर्तमान में भारत के पास टी-72 टैंक के तीन वैरियंट में करीब 2000 से अधिक यूनिट हैं। यह बेहद हल्‍का टैंक है जो 780 हॉर्सपावर जेनेरेट करता है। यह न्‍यूक्लियर, बायोलॉजिकल और केमिकल हमलों से बचने के लिए भी बलाया गया है। यह 1970 के दशक में भारतीय सेना का हिस्‍सा बना था। 'अजेय' में 125 एमएम की गन लगी है। साथ ही इसमें फुल एक्‍सप्‍लोसिव रिऐक्टिव आर्मर भी दिया गया है। इस टैंक में दुश्मन के टैंकों को ट्रैक करने के लिए ऑटोमेटिक ट्रैकर, नई कलीना फायर कंट्रोल सिस्टम और बैलिस्टिक कंप्यूटर लगा हुआ है। इस टैंक में इम्प्रूव्ड थर्मल साइट के साथ लेजर रेंज फाइंडर भी लगा हुआ है। अपग्रेड करने के बाद टी-72 का नया वैरियंट नवीनतम विस्फोटकों को भी फायर करने में सक्षम है। इसका मेन गन कवच-भेदी गोले और हाई एक्सप्लोसिव राउंड को फायर कर सकता है। यह टैंक AT-11 या स्निपर एंटी टैंक मिसाइल भी लॉन्च कर सकता है। टी-72 टैंक के नए वर्जन में दुश्मनों के हमलों से बचने के लिए आर्मर को भी शक्तिशाली बनाया गया है। T-72B3 में आधुनिक Kontakt-5 एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर को लगाया गया है। रूस के आधुनिक टी-90ए टैंक पर भी यही आर्मर लगा हुआ है। यह आर्मर एंटी टैंक मिसाइलों और रॉकेट के हमलों से टैंक को बचाने में सक्षम है।

टी-90 भीष्म टैंक
भारत ने रूस से लगभग 2000 टी-90 भीष्म टैंक को खरीदा है। भारत का टी-90 भीष्म टैंक मूल रूप से रूस में बना है। इसके नाम में टी टैंक को बताता है, जबकि 90 का मतलब यह 1990 के दशक में आधिकारिक रूप से बनकर तैयार हुआ था। इसकी गिनती दुनिया के सबसे शक्तिशाली टैंकों में की जाती है। इसमें भी तीन क्रू मेंबर होते हैं जिनमें ड्राइवर, कमांडर और गनर शामिल होता है। T-90 टैंक में Kaktus K-6 एक्सप्लोसिव रिएक्टिव आर्मर लगा हुआ है, जो इसे दुश्मन के हमले से बचाता है। टी-90 टैंक में अचूक 125 एमएम की मेन गन है। यह 6 किलोमीटर दूर तक सटीक गोलीबारी कर सकता है। इतना ही नहीं, टी-90 टैंक कई तरह की मिसाइलों को भी फायर करने में सक्षम है। इसका वजन 48 टन है। यह दुनिया के हल्के टैंकों में एक है। यह दिन और रात में दुश्मन से लड़ने की क्षमता रखता है। इसमें 1000 हॉर्स पावर का शक्तिशाली इंजन लगा हुआ है। यह एक बार में 550 किमी की दूरी तय कर सकता है। यह टैंक एंटी एयरक्राफ्ट गन से भी लैस है जो दुश्मनों के हेलिकॉप्टर को मार गिरा सकती है।

आईएनएस तबर युद्धपोत
आईएनएस तबर भारतीय नौसेना के तलवार क्लास का तीसरा फ्रिगेट है। आईएनएस तबर रूस में ही बना हुआ युद्धपोत है। इसे भारतीय नौसेना में 19 अप्रैल 2004 को रूस के कलिनिनग्राद में शामिल किया गया था। इस युद्धपोत का संचालन भारतीय नौसेना की वेस्टर्न कमांड करती है। 3620 टन डिस्प्लेसमेंट वाले इस युद्धपोत की लंबाई 124.8 मीटर है। इसके पिछले हिस्से पर हेलिकॉप्टर डेक भी बना हुआ है। आईएनएस तबर की टॉप स्पीड 56 किलोमीटर प्रति घंटा है। इस युद्धपोत पर 18 ऑफिसर्स सहित 180 क्रू मेंबर तैनात होते हैं। इस युद्धपोत पर 24 की संख्या में Buk मिसाइल सिस्टम का नेवल वर्जन Shtil-1 तैनात है। Shtil-1 मीडियम रेंज की एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल है। इसके अलावा 8 की संख्या में इग्ला मैन पोर्टेबर एंटी एयर मिसाइल सिस्टम भी तैनात हैं। क्लब क्लास की एंटी शिप क्रूज मिसाइलों को फायर करने के लिए इसमें आठ वर्टिकल लॉन्चिंग ट्यूब भी लगे हुए हैं। दुश्मन के जमीनी और कम उंचाई पर उड़ने वाले हवाई निशानों को मारने के लिए इसमें A-190E नाम का 100 एमएम का मेन गन लगा हुआ है।

आईएनएस चक्र
भारतीय नौसेना की एकमात्र ऑपरेशन परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र के वापस रूस लौटने के बाद भारत ने इसी सीरीज की अगली पनडुब्बी के लिए डील फाइनल कर ली है। 2019 की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने रूस के साथ परमाणु पनडुब्बियों की खरीद को लेकर एक सीक्रेट डील की थी। इस डील की कुल लागत तब 3 बिलियन डॉलर बताई गई थी। इसके तहत 2025 में भारत को रूस से एक परमाणु पनडुब्बी मिलेगी, जिसे आईएनएस चक्र III के नाम से जाना जाएगा। यह पनडुब्बी भी आईएनएस चक्र की तरह भारतीय नौसेना में अगले 10 साल तक सेवा देगी। भारत को जो पनडुब्बी मिलने वाली है वह रूस की अकूला II क्लास की K-322 Kashalot है। इसमें इंट्रीग्रेडेड सोनार सिस्टम लगा हुआ है, जो काफी दूर से बिना किसी हलचल के दुश्मन की लोकेशन के बारे में पता लगा लेता है। भारत के आईएनएस अरिहंत में भी ऐसा ही सिस्टम लगाया गया है। रूसी नौसेना की K-322 Kashalot पनडुब्बी को भारत को सौंपने के पहले ओवरहॉल किया जाएगा। इससे पनडुब्बी की सर्विस लाइफ बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं, इस पनडुब्बी को भारतीय उपमहाद्वीप के लायक भी बनाया जाएगा। बताया जा रहा है कि ओवरहॉलिंग का काम सेवेरोडविंस्क में स्थित एक रूसी नौसैनिक शिपयार्ड में किया जाएगा।

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