आदेश बना मुसीबत :आरोपियों की दो दर्जन जांच तब ही जेल में दाखिल
इंदौर
मानव अधिकार आयोग ने थानों में आरोपियों के साथ होने वाली प्रताड़ना के लिए यह फार्मेट बनाया है, लेकिन छोटे मामलों में कैदियों के लिए मेडिकल गोपनीयता भंग हो रही है।
कोरोना, एसटीडी (सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज) सहित करीब 24 से ज्यादा जांचें कराने के बाद ही आरोपियों को जेल में दाखिल करने का आदेश अब पुलिस के लिए परेशानी का सबब बन गया है। एक आरोपी की जांच में आठ से नौ घंटे लग रहे हैं। एक दिन में इनकी जांच रिपोर्ट भी नहीं आ पाती। इससे समय पर जेल नहीं भेजने पर अधिकारियों को कोर्ट की अवमानना का भी खतरा मंडरा रहा है।
गौरतलब है कि पुलिस अधीक्षकों के नाम जारी आदेश में कहा गया है कि पुलिस अभिरक्षा से न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने से पहले बंदियों की (कोविड-19) संबंधी टेस्ट कराने के साथ-साथ सात प्रमुख हेड में करीब 24 से ज्यादा जांचें कराना हैं। इनके मेडिकल सर्टिफिकेट जारी होने पर ही जेल में दाखिल करें।
जांचें, जो कराना हैं जरूरी
24 बिंदुओं की जांच में बंदी (आरोपी) की प्रीवियस मेडिकल हिस्ट्री, वर्तमान बीमारी की जानकारी, बीमारी के लिए ली जाने वाली दवाएं, गले में बलगम की शिकायत है तो उसकी जांच, किसी दवा से रिएक्शन है तो उसकी जांच, इसके अलावा बंदी कोई जानकारी दे वह भी। फिजिकल वेरिफिकेशन में – हाइट, वेट, महिला कैदी है तो (मासिक धर्म) की डेट, आंखों में पीलापन का टेस्ट, ग्रंथियों में विस्तारण (लिफ्म नोड), नाखूनों/कुबड़ों में दरार, नीलापन और पीलिया और शरीर पर चोट की जांच।
इसी में पैथोलॉजी जांच, टीबी के लिए एक्स-रे, ब्लड संबंधी सभी तरह की जांच, मुख्य रूप से एचआईवी टेस्ट (यदि बंदी चाहे तो), हेपेटाइटिस के लिए ब्लड टेस्ट व सेक्सुअली ट्रांसमीटेड डिसीज (एसटीडी), इसके अलावा स्नायु तंत्र, हृदय व धमनी तंत्र, श्वसन तंत्र, आंख, कान, नाक और गला, पाचन एवं उदर रोक की जांच, दांत-मसूड़ों की जांचें जरूरी हैं।