पांच रुपये में कपड़े खरीदो, 15 रुपये में प्रेस… धनवान पाएंगे पुण्य, गरीब को नहीं लगेगी ठेस
इंदौर
शनिवार से इंदौर स्थित खजराना गणेश मंदिर परिसर में एक ऐसा 'शोरूम खुला है, जहां दो से लेकर 50 रुपये की अत्यंत मामूली कीमत पर उपयोगी सामान मिल सकेगा। यहां पांच रुपये में कपड़े, 10 रुपये में शू-रैक, 15 रुपये में प्रेशर कूकर, 30 रुपये में स्कूल बैग, 50 रुपये में मिक्सर सहित अन्य चीजें मिलेंगी। यह सामान उपयोग किया गया होगा, लेकिन टूटा-फूटा, फटा या बेकार नहीं होगा। खास बात यह है कि यहां मिलने वाले सामान से धनवान लोगों को पुण्य मिलेगा और जरूरतमंद गरीब लोगों का स्वाभिमान बचेगा। यह शोरूम सामाजिक संस्था नींव और लायंस क्लब के साझे प्रयास से शुरू किया गया है।
यह सामान शहर के ऐसे धनवान या मध्यमवर्गीय घरों से जुटाया जाएगा, जिन्होंने इसका एकाधिक बार उपयोग कर लिया है और अब नया सामान खरीदने के कारण उनके लिए यह पुराना हो गया है। संस्था द्वारा यह सामान इकट्ठा कर, साफ करके शोरूम में रखा जाएगा। जरूरतमंद लोग अपनी पसंद, जरूरत और बजट के अनुरूप यहां से यह सामान खरीद सकेंगे। लोग शोरूम आकर उसी तरह सामान को देख सकेंगे, जैसे कि मॉल में सामान देखते और पसंद करते हैं।
नींव की संस्थापक पंखुरी किरण प्रकाश बताती हैं- 'शोरूम में एक भी वस्तु, कपड़ा या अन्य सामान टूटा-फूटा या अनुपयोगी नहीं होगा। दान में मिलने कोट, साड़ी, जूते, कपड़े आदि को धुलवा कर, ड्राइक्लीन करवा कर ही शोरूम में रखा जाएगा। शू-रैक, टेबल या अन्य सामान को भी सुधरवा कर उपयोग में आने योग्य बनाकर ही शोरूम में रखा जाएगा।
लायंस क्लब की डा. साधना सोडानी के अनुसार शोरूम संचालन के लिए तंगबस्ती के ही किसी व्यक्ति को नियुक्त किया गया है। इससे उसे रोजगार मिल रहा है। हर शोरूम में नियुक्त कर्मचारी को वेतन भी दिया जाएगा। शहर में 100 शोरूम शुरू करना हैं, इससे 100 जरूरतमंद योग्य व्यक्तियों को रोजगार मिलेगा। खर्च की व्यवस्था दोनों संस्थाओं के सहयोग से की जाएगी।
क्या-क्या मिल सकता है शोरूम में
राशन सामग्री, बर्तन, फर्नीचर, जूते-चप्पल, बड़े लोगों व बच्चों के कपड़े, खिलौने, शिक्षण सामग्री (कापी, किताब, कम्पस, पेंसिल, स्कूल बैग, यूनिफार्म आदि), इलेक्ट्रानिक उपकरण (पंखे, प्रेस, स्विच, लाइट, टीवी, म्यूजिक सिस्टम आदि)।
मुफ्त देते तो स्वाभिमान को ठेस पहुंचती
सामान जरूरतमंदों को मुफ्त भी दिया जा सकता था, लेकिन इससे स्वाभिमानी व मेहनतकश जरूरतमंद लोगों को ठेस पहुंचती। उनका मन इसे 'भीख की तरह स्वीकारने को तैयार न होता, इसलिए सामान की मामूली कीमत रखी गई है। कम आय वर्ग के लोग यह कीमत आसानी से चुका पाएंगे और स्वाभिमान भी बचा रहेगा।