सांसदों की समीक्षा के बाद 2024 में होगा, भाजपा के कई MP का पत्ता कट

नईदिल्ली

लोकसभा चुनाव 2024 में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है और भाजपा तैयारियों में जुट गई है। उसकी तैयारियों का अहम हिस्सा हैं मौजूदा सांसदों के कामकाज और लोकप्रियता का सर्वे कराना, जिसके आधार पर ही उन्हें अगला मौका दिया जाएगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि सांसदों के प्रदर्शन की समीक्षा के लिए अलग-अलग एजेंसियों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा अपने निजी मेकेनिज्म का भी पार्टी इस्तेमाल कर रही है। जनहित की योजनाओं को सांसद किस तरह लागू कर रहे हैं और जनता के बीच संवाद कैसा है, ये दो पैमाने सबसे अहम हैं, जिन पर खरा उतरने वाले सांसदों को ही दोबारा मौका दिया जाएगा।

सोशल मीडिया पर सांसद कितना सक्रिय रहते हैं और कैसे जनता के साथ संवाद है। यह भी उनके प्रदर्शन की समीक्षा में एक आधार बनेगा। भाजपा की लीडरशिप वाला NDA इस बार INDIA के 26 दलों की एकता का मुकाबला कर रहा है। इसके अलावा कई ऐसे केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनावी समर में उतारने की तैयारी है, जो अब तक राज्यसभा के ही मेंबर रहे हैं। हालांकि उन्हें उतारने से पहले सीट का सामाजिक समीकरण और नेता की लोकप्रियता को भी देखा जाएगा। भाजपा ने 2019 में भी इस फॉर्म्यूले पर काम किया था। तब उसने रविशंकर प्रसाद, हरदीप सिंह पुरी और स्मृति इरानी को उतारा था, जो राज्यसभा के मेंबर थे।

इसका सबसे बड़ा फायदा भाजपा को अमेठी में हुआ, जहां स्मृति इरानी से मुकाबले राहुल गांधी हार गए थे। भाजपा पहले ही देश की ऐसी 166 सीटों पर फोकस कर रही है, जहां वह खुद को कमजोर मानती है। कुछ जगहों पर भाजपा उम्र को फैक्टर मानते हुए भी उम्मीदवार चेंज कर सकती है। ऐसी सीटों पर लोकप्रिय विधायकों को मौका मिल सकता है। इस फॉर्म्यूले पर भाजपा यूपी में काम कर सकती है। यहां बरेली, प्रयागराज, कानपुर जैसी सीटों से उम्मीदवार बदलने की चर्चाएं हैं।

2019 में भी कई बड़े चेहरों को नहीं दिया था मौका

भाजपा ने 2019 में पहली बार सांसद बने 158 लोगों में से 55 को दोबारा मौका नहीं दिया था। तब पार्टी नेतृत्व का कहना था कि ये लोग मोदी लहर में जीत गए थे, लेकिन अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए थे। यूपी की ही बात करें तो भाजपा ने शाहजहांपुर से कृष्णा राज, आगरा से रामशंकर कठेरिया और फतेहपुर सीकरी से चौधरी बाबूलाल को हटा दिया था। यही नहीं उत्तराखंड में बीसी खूंडरी और भगत सिंह कोश्यारी जैसे वरिष्ठ नेताओं को मौका नहीं मिला था। उम्र के आधार पर भाजपा ने एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कलराज मिश्र, करिया मुंडा और शांता कुमार जैसे दिग्गज नेताओं को भी मौका नहीं दिया था। इनमें से ज्यादातर को बाद में गवर्नर जैसे अहम पद दिए गए थे।

 

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