भारत में ‘पीछे के दरवाजे’ से घुसना चाह रहा चीन, सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास भूटान में बना रहा सड़क

पेइचिंग
पूर्वी लद्दाख के रास्ते चीन को आगे बढ़ने से भारतीय सेना ने रोक रखा है। लेकिन विस्तारवादी चीन अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए 'पीछे' के रास्ते से भारत में घुसने की कोशिश कर रहा है। चीन की नजरें भारत के अहम सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर टिकी हुई हैं जिसे भारत का 'चिकन नेक' भी कहा जाता है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक चीन तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) की चुंबी घाटी में अपनी कनेक्टिविटी को मजबूत कर रहा है और अपने पैर जमा रहा है। यह इलाका भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर न सिर्फ व्यापारिक और भौगोलिक बल्कि रणनीतिक रूप से भी भारत का एक अहम क्षेत्र है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार पूर्वी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडे ने हाल ही में सिलीगुड़ी को 'संवेदनशील' करार दिया था। एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि चीन चुंबी घाटी में एक वैकल्पिक मार्ग का निर्माण कर रहा है जो सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है। चीनी सेना भूटानी क्षेत्र में सड़कें बनाकर अपनी जड़े मजबूत कर रही है।

सैटेलाइट इमेज से भी हुआ था खुलासा
पिछले साल सामने आई हाई रिजॉल्यूशन सैटेलाइट इमेज में चीन को भूटानी इलाके से होते हुए तोरसा नदी के किनारे सड़कें बनाते हुए दिखाया गया था। एक रक्षा अधिकारी ने कहा कि सीमा समाधान को गति देने के लिए भूटान और चीन के बीच तीन-चरणीय रोड मैप पर हालिया समझौता ज्ञापन इस संदर्भ में अहम भूमिका निभा सकता है।

विशेषज्ञों ने भी जताई चिंता
रक्षा मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने भी चीन के निर्माण पर चिंता जताई है। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा कि जब सभी की निगाहें लद्दाख में सीमावर्ती क्षेत्रों पर पीएलए के अतिक्रमण पर हैं, तब चीन चुपचाप कहीं और अपनी आक्रामक क्षमताओं को बढ़ा रहा है। इसमें भारत के चिकन नेक के पास भूटान क्षेत्र में सड़कों का निर्माण शामिल है।

अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा सिलीगुड़ी कॉरिडोर
पश्चिम बंगाल में स्थित गलियारा 60 किमी लंबा और 20 किमी चौड़ा है और उत्तर-पूर्व हिस्से को बाकी भारत से जोड़ता है। यह न केवल एक महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है बल्कि दक्षिण पूर्व एशिया के लिए भी एक महत्वपूर्ण 'प्रवेश द्वार' है। यह क्षेत्र कई अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है जिसमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन शामिल हैं। चिकन नेक कॉरिडोर से तिब्बत की चुंबी घाटी महज 130 किमी दूर है।

युद्ध की स्थिति में निभा सकता है अहम भूमिका
इस घाटी के सिरे पर भारत, नेपाल और भूटान का ट्राइजंक्शन स्थित है जिसे डोकलाम क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जो अब एक गतिरोध बिंदु बन गया है। दार्जिलिंग की चाय और इमारती लकड़ी इस क्षेत्र के महत्व को और बढ़ा देती है। एलएससी के पास सड़क मार्ग और रेलवे सिलीगुड़ी कॉरिडोर से जुड़े हुए हैं। इस कॉरिडोर के जरिए ही उन्हें सभी जरूरी चीजों की आपूर्ति की जाती है। युद्ध की स्थिति में सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से आसानी से हथियार और सैनिकों लामबंद किया जा सकता है।

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