भारत में सौर ऊर्जा का जोर, 2047 तक 3,700 करोड़ रुपये का रीसाइक्लिंग मार्केट बनने का अनुमान
नई दिल्ली
खराब या प्रयोग से बाहर हो चुके सौर पैनलों से सामग्रियों को निकालना और उन्हें दोबारा इस्तेमाल करना 2047 में 3,700 करोड़ रुपये का बाजार अवसर हो सकता है। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के दो नए स्वतंत्र अध्ययनों से सामने आई है, जिन्हें आज जारी किया गया है। इनमें बताया गया है कि यदि यह संभावित क्षमता हकीकत बनती है तो सौर कचरे से सिलिकॉन, तांबा, एल्यूमीनियम और चांदी जैसी मूल्यवान सामग्रियों को दोबारा निकाला जा सकता है और इससे 2047 तक क्षेत्र की विनिर्माण जरूरतों का 38 प्रतिशत हिस्सा पूरा किया जा सकता है। साथ में, नई सामग्री की जगह पर पुनर्चक्रित सामग्री के उपयोग से 37 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन भी बचाया जा सकता है। भारत का सोलर मॉड्यूल रीसाइक्लिंग मार्केट अभी बहुत प्रारंभिक चरण में है, जिसमें कुछ कमर्शियल रीसाइक्लर्स काम कर रहे हैं। सीईईडब्ल्यू के दोनों अध्ययन एक घरेलू सोलर रीसाइक्लिंग इकोसिस्टम बनाने के लिए भारत की पहली व्यापक रूपरेखा उपलब्ध कराते हैं, जो स्वच्छ ऊर्जा और विनिर्माण में आत्मनिर्भरता, दोनों का ही समर्थन करता है।
अनुमान है कि 2047 तक, भारत की स्थापित सौर क्षमता से 11 मिलियन टन से अधिक सौर कचरा निकल सकता है, जिसका अधिकांश हिस्सा क्रिस्टलीन-सिलिकॉन मॉड्यूल से होगा। इसके प्रबंधन के लिए देश भर में लगभग 300 रीसाइक्लिंग प्लांट्स और 4,200 करोड़ रुपये के निवेश की जरूरत होगी। ऋषभ जैन, फेलो, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “भारत की सौर क्रांति एक नए हरित औद्योगिक अवसर को ताकत दे सकती है। अपनी स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियों में सर्कुलैरिटी (चक्रीयता) को शामिल करके, हम महत्वपूर्ण खनिजों को दोबारा हासिल कर सकते हैं, आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत बना सकते हैं, और हरित नौकरियां (green jobs) सृजित कर सकते हैं, साथ में, संभावित कचरे को स्थायी मूल्य में बदल सकते हैं। इस सर्कुलर इकोनॉमी (circular economy) का निर्माण भारत के लचीले और जिम्मेदारीपूर्ण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”
सीईईडब्ल्यू अध्ययन यह भी रेखांकित करता है कि सौर पैनलों की रीसाइक्लिंग (solar recycling) की एक औपचारिक व्यवस्था आज भी अव्यवहार्य है, क्योंकि रीसाइक्लर्स को प्रति टन 10,000-12,000 रुपये का नुकसान हो रहा है। बड़े परिचालन खर्चों में बेकार या प्रयोग से बाहर हो चुके सोलर मॉड्यूल को दोबारा खरीदना है, जो कुल खर्च का लगभग दो-तिहाई (लगभग 600 रुपये प्रति पैनल) होता है। इसके बाद प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग), संग्रहण (कलेक्शन) और निपटान (डिस्पोजल ) की लागत आती है। सौर पैनल रीसाइक्लिंग को लाभदायक बनाने के लिए, खराब मॉड्यूल की कीमत 330 रुपये से कम होनी चाहिए, या रीसाइक्लर्स को ईपीआर सर्टिफिकेट ट्रेडिंग, टैक्स राहत और सिलिकॉन व चांदी की कुशल पुनर्प्राप्ति के लिए शोध एवं विकास निवेश के जरिए मदद दी जानी चाहिए।
आकांक्षा त्यागी, प्रोग्राम लीड, सीईईडब्ल्यू, ने कहा, “सोलर रीसाइक्लिंग भारत की स्वच्छ ऊर्जा और विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं के बीच पुल बन सकती है। कचरा प्रबंधन से आगे, यह सरलता से सामग्री निकालने के लिए उपयुक्त पैनल डिजाइन करके, सामग्री की शुद्धता में सुधार लाकर और महत्वपूर्ण खनिजों के लिए नई वैल्यू चेन बनाकर, इनोवेशन का अवसर भी देता है। ईपीआर लक्ष्यों को लाने, सर्कुलर उत्पादों के लिए मांग पैदा करने, डेटा पारदर्शिता में सुधार लाने और रीसाइक्लिंग को ध्यान में रखकर उत्पादों को डिजाइन करने जैसे उपायों से भारत की सौर कचरे की चुनौती एक हरित उद्योग अवसर में बदल सकती है।”
रिसाइक्लिंग को विस्तार देने के लिए, सीईईडब्ल्यू के अध्ययन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के नेतृत्व में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत संग्रहण और पुनर्प्राप्ति (collection and recovery) के लिए ईपीआर लक्ष्यों को लाने, और नीति, वित्त और उद्योग कार्रवाई में समरूपता के लिए नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत एक सर्कुलर सोलर टास्कफोर्स बनाने का सुझाव देते हैं। इममें वेस्ट हॉटस्पॉट का पता लगाने के लिए एक केंद्रीकृत सोलर इन्वेंट्री बनाने का भी सुझाव दिया गया है और निर्माताओं से सामग्री के आंकड़े साझा करने और आसानी से रिसाइकिल होने वाले मॉड्यूल बनाने का आग्रह किया गया है। एक साथ मिलकर ये कदम एक मजबूत संग्रह प्रणाली बनाएंगे, सामग्री को दोबाारा हासिल में अनुसंधान व विकास को बढ़ावा देंगे, और भारत के अक्षय ऊर्जा मिशनों में सर्कुलरिटी को भी शामिल करेंगे, ताकि स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन संसाधनों के मामले में लचीला और आत्मनिर्भर बना रहे।



